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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

   

प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।

उत्तर -

फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्त

प्रत्येक प्रकार की कला के कुछ सिद्धान्त होते हैं। ये सिद्धान्त बड़े ही नभ्य तथा लचीले "हैं तथा इनका वही रूप स्वीकार करना चाहिए जो प्रचलित फैशन तथा विशिष्ट शरीर आकृति के अनुरूप रूपान्तरित हो सके। परिधान रचना के आधारभूत कला-सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

(1) अनुपात - इस सिद्धान्त के अन्तर्गत एक ही वस्त्र के विभिन्न भागों का आपस में सम्बन्ध अर्थात् अनुपात और अनुरूपता देखी जाती है। परिधान में बेल्ट योक, लम्बाई, घेर आदि शरीर के विभिन्न खण्डों के विभाजन का प्रदर्शन करते हैं। इनकी रचना एक-दूसरे के उचित अनुपात में होनी चाहिए तथा वे ऐसे हों जोकि आँखों के लिये सुखद मेल प्रस्तुत करें। परिधान के विभिन्न खण्डों में स्थान अर्थात् क्षेत्र सामंजस्य रहना अनिवार्य है।

विभिन्न व्यक्तियों की शरीर रचना अलग-अलग होती है। चालू फैशन की हूबहू नकल कभी-कभी अनुचित भी हो सकती है। अतः फैशन के साथ-साथ वस्त्र की रचना में शरीर के आकार से अनुरूपता लाने का प्रयास करना चाहिए। इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए ही फैशन का निर्वाह हो सकता है तथा शरीर के अनुकूल परिधान भी बन सकते हैं। उचित एवं अच्छे अनुपात से ही परिधान का रंग-रूप और आकार खिलता है। रेखाओं, दूरी एवं माप आदि सभी दृष्टियों से परिधान रचना में अनुपात का ध्यान रखना चाहिए। रचना तथा अलंकरण सम्बन्धी रेखाओं की पुनरावृत्ति तथा विविधता से परिधान में रोचकता आ जाती है। परिधान के अलंकरण एवं सहउपकरण के मापांक में अनुपात रखने से परिधान एवं पहनने वाले में सुन्दर सामंजस्य बना रहता है।

(2) सन्तुलन सन्तुलन से परिधान में विश्रामदायक भाव आता है। सन्तुलन प्रायः वस्त्र की मध्यरेखा से देखा जाता है। दोनों हिस्सों में समान सन्तुलन बनाने से दोनों तरफ आकर्षण रहता है। जब दोनों भागों में आकर्षण, रचना तथा अलंकरण लगभग समान रहते हैं. तो ऐसा सन्तुलन औपचारिक सन्तुलन कहलाता है। कभी-कभी दोनों भागों की रचना, अलंकरण और आकर्षण में भिन्नता रहती है। ऐसी विभिन्नता से जो संतुलन उत्पन्न किया जाता है, उसे अनौपचारिक कहते हैं। अनौपचारिक सन्तुलन में दोनों ओर का आकर्षण असमान वस्तुओं से उत्पन्न किया जाता है, फिर भी विश्रामदायक होता है। परिधान रचना से अनौपचारिक सन्तुलन बनाना आसान है, क्योंकि सब कुछ दोनों ओर एक सा बना दिया जाता है। ऐसा सन्तुलन कुछ भारी होता है तथा उसमें नवीनता एवं अलेखापन का अभाव रहता है। फलस्वरूप परिधान एकरसता वाला बन जाता है।

असंतुलित नमूने वाली पोशाकें अधिक दिन लोकप्रिय नहीं रहती हैं। यदि किसी परिधान में असंतुलित रचना दिखाई दे तो फर, स्कर्फ, फूल, बटन आदि में सन्तुलन उत्पन्न करना चाहिए। औपचारिक तथा अनौपचारिक सन्तुलन के सम्मिश्रण से परिधान को अत्यधिक रोचक एवं मनोहारी बनाया जा सकता है।

(3) लय लय कला का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। लय के अन्तर्गत देखा जाता है कि परिधान में रंग रचना, रेखा तथा अलंकरण ऐसे हों कि दृष्टि फिसलकर एक छोर से दूसरी छोर तक चली जाए। इस प्रकार दृष्टि का फिसलना संगीत की लय के समान नियमानुसार होता है। इस लय का मार्ग सम-समान सीधा तथा चिकना भी हो सकता है। प्राचीन राग- रागनियों पर आधृत संगीत के सम-समान। लय को उत्पन्न करने के लिये परिधान की रचना में रंग रचना, रेखा तथा अलंकरण सभी मनोहारी रूप में होने चाहिए ठीक वैसे ही जैसे मधुर संगीत कर्णप्रिय लगता है तथा सुख-शान्ति प्रदान करने वाला होता है।
लय को उत्पन्न करने के लिये परिधान की रंग, रचना, रेखा आकृति तथा अलंकार में पुनरावृत्ति स्तरीकरण तथा विकिरण का प्रयोग करना चाहिए। सम्पूर्ण परिधान का संयोजन इतना रोचक होना चाहिए कि उस पर दृष्टि लयबद्ध गति में फिसले तथा उसका प्रत्येक भाग मिलकर सुमधुर संगीत उत्पन्न करता सा प्रतीत हो।

(4) आकर्षण केन्द्र - हर परिधान में सजावट के समान ही एक महत्वपूर्ण केन्द्रित प्रसंग होना चाहिए। गोलडस्तीन ने इसे ही 'Emphasis' कहा है। परिधान जहाँ तक सम्भव हो सादे सुविधाजनक और अच्छे नमूनों वाले होने चाहिए। परिधान रचना में केन्द्र बिन्दु को दिया जाने वाला महत्व परिधान के विशिष्ट सौन्दर्य तथा कोमल लालित्य को बढ़ाता है।

परिधान के बटन फर रंगीन गोट या पायपिंग झालर आदि में किसी को आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बनाया जा सकता है। केन्द्र बिन्दु चेहरे के जितना पास रखा जाता है उतना ही अच्छा होता है।

आकर्षण केन्द्र बिन्दु ऐसा होना चाहिए जो व्यक्ति की शोभा बढ़ाए और साथ ही वस्त्र के विभिन्न भागों के अनुरूप समयानुकूल हो।

(5) अनुरूपता - परिधान रचना में एकता एवं अनुरूपता उतनी ही आवश्यक है जितनी कि संगीत अथवा सजावट में। इसके अभाव में अन्य सभी वस्तुओं का सौन्दर्य व्यर्थ प्रतीत होता है।

गोल्डस्टीन के अनुसार, “परिधान की रचना में रेखा, रंग, आकृति व्यवस्था, आकार, ध्येय तथा साथ ही व्यक्तित्व तथा व्यक्ति की निजी शारीरिक विशेषताओं से अनुरूपता होना अनिवार्य है। यह अनुरूपता ही सभी की एकता से उपलब्ध होती है जिसमें उचित परिमाण में भिन्नता, विविधता तथा विपरीतता होनी चाहिए। परिधान के सभी अंग या भाग ऐसे होने चाहिए जो एक-दूसरे के साथ चल सकें। वस्तुओं के चुनाव और उनको सुव्यवस्थित रूप देने से जो एकता का भाव उत्पन्न होता है उसी से स्वतः अनुरूपता आ जाती है। इन वस्तुओं का चयन पूर्व नियोजित होना चाहिए। इनमें विचारों की अनुरूपता की उपस्थिति अनिवार्य है। एकरूपता लाने के लिये रंग, रेखा संरचना, आकार तथा आकृति सूझ-बूझ के साथ अथवा विवेकपूर्ण चुनाव करके उन्हें भी एकभाव के धागे में पिरोया जाता है। इसका अभिप्राय परिधान तथा सम्पूर्ण व्यक्तित्व का आकर्षण और शोभा बढ़ाना है। व्यक्ति और परिधान का तादात्म्य अनिवार्य है।

परिधान में अनेक चीजों का समावेश, गड़बड़ी एवं व्याकुलता का द्योतक है। विविधता, विचित्रता तथा विभिन्नता सूझ-बूझ और एक सीमा के अन्दर लानी चाहिए। सभी का चुनाव बुद्धिमानी से उपयुक्तता को ध्यान में रखकर करना चाहिए। रंग, रचना, आकार, आकृति सभी शरीर रचना, आकार, आकृति आदि सभी शरीर रचना से आकर्षक ढंग से एकरूपाकार  होनी चाहिए। इनकी व्यवस्था में शरीर की प्रकृति रेखाओं के सौन्दर्य को उभारने में सहयोग स्पष्ट रूप से परिलक्षित होना चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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